टीम के साथ बढ़ रहे हैं आगे
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मैं एक किसान परिवार से आता हूं। पिता जी खेती के अलावा वकालत करते हैं। मां एक इंटर कॉलेज की रिटायर्ड प्रिंसिपल हैं। इस तरह छोटे से शहर और मध्यवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखने के कारण अभिभावक हमेशा चाहते थे कि मैं सर्विस सेक्टर में जाऊं और ऐशो-आराम की जिंदगी जिऊं। यूपी में आजमगढ़ के ज्योति निकेतन स्कूल से प्राथमिक शिक्षा पूरी करने के बाद मैंने पीजी कॉलेज से कंप्यूटर एप्लीकेशन एवं मैथ्स में ग्रेजुएशन किया। मुझे गणित और भौतिक शास्त्र के प्रश्नों का हल निकालना हमेशा से अच्छा लगता था, इसलिए बीएचयू से जियो फिजिक्स में एमएससी (टेक) किया। हालांकि उसे बीच में ही छोड़कर मैंने यूपीएमसीएटी की परीक्षा दी। एमबीए की इस प्रवेश परीक्षा में अच्छी रैंक हासिल करने के कारण मैंने फाइनेंस एवं मार्केटिंग में एमबीए किया। इसके बाद मैंने आरआइएल में मार्केटिंग एवं स्ट्रेटेजी पर काम करना शुरू किया। यहीं मुझे मेरे मेंटर विक्रम सिंह नेगी मिले, जो तब कंपनी के डीजीएम थे। आगे चलकर मैंने डोर स्टेप स्टार्टअप एवं वीडियो इंडस्ट्रीज के साथ काम किया।
कई कोशिशों के बाद शुरुआत
नौकरी करते हुए हमेशा अंदर से यही महसूस करता था कि अपना कोई बिजनेस शुरू करूं। तत्पश्चात मैंने एक मार्केटिंग एजेंसी शुरू की। चार साल चलाने के बाद उसे बेच दिया और शुरुआत की नोवासिस लैब्स की, जो एक टेक्नोलॉजी कंपनी है। मैंने देखा कि बहुत से लोग नौकरी के कारण अपने गृह शहर या गांव से दूर रहते हैं। इससे उन्हें अपने शहरों की खबरें नहीं मिल पाती हैं। तभी हमने स्थानीय कंटेंट पर ध्यान देते हुए इनयूनि की शुरुआत की। हमारे एप पर समाचार, वीडियोज, सरकारी घोषणाओं की जानकारी से लेकर बहुत कुछ मिलता है।
हर दिन मुश्किल यात्रा
उद्यमिता में मुझे आनंद तो आ रहा है, लेकिन हर दिन एक मुश्किल यात्रा होती है। हर दिन की अपनी चुनौतियां रहती हैं। हां, एक बार उन पर विजय हासिल कर ली जाए, तो मन को संतोष मिलता है। बिजनेस में ऐसे निर्णय लेते हैं, जो न सिर्फ आपको, बल्कि सभी को प्रभावित कर सकते हैं। इसलिए यहां अधिक जिम्मेदारियां उठानी पड़ती हैं। फेल्योर्स होते हैं। थोड़ी देर के लिए आत्मविश्वास डगमगा जाता है। लेकिन मैं सीख लेकर आगे बढ़ जाता हूं।
टीम मिलकर लेती है निर्णय
मेरी कोशिश रहती है कि टीम को साथ लेकर चलूं। उनके साथ आइडिया एवं कॉन्सेप्ट पर विचार-विमर्श करता हूं, ताकि सभी मिलकर एक निर्णय ले सकें। हम कैसे, क्यों और क्यों नहीं...आदि पर एक स्वस्थ बहस करते हैं। इस तरह टीम के सदस्यों को भी परिवार जैसा महसूस होता है। दफ्तर में ओपन कल्चर है। सुबह के समय ऑफिस पहुंचने का कोई निर्धारित समय नहीं है। सब खुद ब खुद अपनी जिम्मेदारियां समझते हैं।